एक हवा का झोंखा था वो
जो गालों को सहला गया
फिर जुल्फों को छेड़ गया
और होंटों को सुर्ख कर
साँसों में समां गया.
पल-पल उठती लहरों-सा
झूले में झूलता महबूब-सा
झपकती हुयी पलकों जैसा
मोर-पंख का छुवन है वैसा
हर एक अंग हल्का-सा छूकर चला गया.
क्या सिर्फ एक एहसास था वो
जो तन को चीर मन में उतर गया?
आँखों में नमी, कभी कम न होनेवाली कमी दे गया
लगता था बस अभी अपने आलिंगन में छुपा लेगा
पर कुछ कहने सुनने से पहले चला गया वो.
रुक जाता ठोड़ी देर और
तो अपने बाहों में भर लेती
जितने मृदु चुम्बन उसने दिए
एक एक कर सारे लौटा देती
अपनी चाहत कि शीतल चांदनी से उसके सारे घाव भर देती.
पर ठहरना उसकी फितरत नहीं
एक हवा का झोंखा था वो
जो आया, चला गया
न जाने कैसे इतने में ही ज़िन्दगी का हर मायना बदल गया
पर क्या यही कम है कि क्षणभर आ टकरा गया?
अनंतर्मन के मनोहारी अहसास - बहुत सुंदर
ReplyDelete@ न जाने कैसे इतने में ही ज़िन्दगी का हर मायना बदल गया
ReplyDeleteपर क्या यही कम है कि क्षणभर आ टकरा गया?
प्रेममयी अनुभूति। सुन्दर प्रस्तुति। शब्दों को थोड़ा और थामती चलें।
झोंखा - झोंका।
राकेशजी, शुक्रिया!
ReplyDeleteगिरिजेश्जी, झोंका ही लिखा था. पर मैं सीधे हिन्दी में टैप नही करती. अंग्रेजी में टैप करके, हिन्दी में बदलते वक्त ये
ReplyDeleteगलती रह गई. सुधारने के लिए शुक्रिया.
सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete@Patali-The-Village, शुक्रिया!
ReplyDeleteरचना का जो मूल है प्रेम भाव भरपूर।
ReplyDeleteअन्तर्मन के भाव का खूब दिखाया नूर।।
सादर
श्यामल सुमन
www.manoramsuman.blogspot.com
bahut sundar rachna......man k bhavo ki bahut hi manohari prastuti hai
ReplyDeletepls visit my blog
www.ultayug.blogspot.com
क्या सिर्फ एक एहसास था वो
ReplyDeleteजो तन को चीर मन में उतर गया?
आँखों में नमी, कभी कम न होनेवाली कमी दे गया
लगता था बस अभी अपने आलिंगन में छुपा लेगा
पर कुछ कहने सुनने से पहले चला गया वो.
बहुत सुंदर लिखा है...
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
@श्यामल सुमनजी, राहुल, वीणा, अजय कुमारजी, आनंद पाण्डेयजी, सुरेन्द्र सिंघजी, बहुत शुक्रिया कि आपने मेरी रचना पढ़कर टिप्पणी देने का कष्ट किया.Thanks for visiting.
ReplyDeleteसंगीताजी, शुक्रिया! सच पूछिए तो, मैंने लिखना छोड़कर बड़े साल हो गए. ये सारी मेरी बहुत पुरानी कवितायेँ हैं!
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