एक हवा का झोंका था वो
जो गालों को सहला गया
फिर जुल्फों को छेड़ गया
और होंटों को सुर्ख कर
साँसों में समां गया.
पल-पल उठती लहरों-सा
झूले में झूलता महबूब-सा
झपकती हुयी पलकों जैसा
मोर-पंख का छुवन है वैसा
हर एक अंग हल्का-सा छूकर चला गया.
क्या सिर्फ एक एहसास था वो
जो तन को चीर मन में उतर गया?
आँखों में नमी, कभी कम न होनेवाली कमी दे गया
लगता था बस अभी अपने आलिंगन में छुपा लेगा
पर कुछ कहने सुनने से पहले चला गया वो.
रुक जाता ठोड़ी देर और
तो अपने बाहों में भर लेती
जितने मृदु चुम्बन उसने दिए
एक एक कर सारे लौटा देती
अपनी चाहत कि शीतल चांदनी से उसके सारे घाव भर देती.
पर ठहरना उसकी फितरत नहीं
एक हवा का झोंका था वो
जो आया, चला गया
न जाने कैसे इतने में ही ज़िन्दगी का हर मायना बदल गया
पर क्या यही कम है कि क्षणभर आ टकरा गया?
अच्छी पंक्तिया है .....
ReplyDeleteअपने विचार प्रकट करे
(आखिर क्यों मनुष्य प्रभावित होता है सूर्य से ??)
http://oshotheone.blogspot.com/2010/09/blog-post_07.html
पर ठहरना उसकी फितरत नहीं
ReplyDeleteएक हवा का झोंका था वो
जो आया, चला गया
न जाने कैसे इतने में ही ज़िन्दगी का हर मायना बदल गया
पर क्या यही कम है कि क्षणभर आ टकरा गया?
सुंदर अभिव्यक्ति !!
@ संगीताजी, शुक्रिया!
ReplyDelete@ओशो रजनीश, शुक्रिया! आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा.
ReplyDeleteKrupaya mujhe koi yeh bataye ki aap sab log hindi alphabets kaise likhlete hain. Kya koi special software hai?
ReplyDelete@Shankar, main pehle gmail main English main likhti hoon and then convert it to Hindi. There must be better ways!
ReplyDelete