मेरे कमरे में एक लम्बा-सा आइना है.
आते-जाते, चाहे-अनचाहे, जिसमे मैं
अपना प्रतिबिम्ब दिन में कई बार देखती हूँ.
आज फिर अकस्मात् दर्पण में खुद को देखा.
चपटी नाक और मोटे गालों के सिवाय
और कुछ नज़र ही नहीं आया.
हमेशा कि तरह मैंने फिर सोचा
कितनी साधारण-सी लगती हूँ मैं.
कुछ भी तो ख़ास नहीं है
मेरे इस सामान्य चेहरे में...
पता नहीं उन्होंने क्या देखा मुझमें
जो यूं घंटों निहारते रहतें हैं
अपनी खूबसूरत नीली आँखों से
मेरी मामूली सांवली सूरत को
मानो ऐसी मोहिनी मूरत
कभी देखी ही न हो !
अगर यह साँचा आइना न होता
तो मैं भी धोखा खा जाती
और अपने आप को सुन्दर समझ बैठती...
अचानक, मुझ पर गढ़ी उनकी एकटक
भावुक निगाहों क आभास हुआ
मारे शर्म के पलकें झट झुक गयीं.
और जब उठीं तो आँखों में एक अजीब-सी चमक थी
गालों पर सुर्खी और होटों पर एक हलकी-सी हंसी थी.
फिर सहसा एहसास हुआ,
शायद मुझ में नहीं
सुन्दरता उनकी निगाहों में है !
मुझ में नहीं
ReplyDeleteसुन्दरता उनकी निगाहों में है !
तिवारीजी, शुक्रिया! लगता है उपरोक्त पंक्तियाँ आपको पसंद आयीं.
ReplyDeleteBeautiful poetry.
ReplyDeleteYour ability to see, appreciate and express the emotions of others is really unique.
Very few ppl have this ability. Rare.
Very romantic, deeply romantic.
ReplyDeleteThank you.
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