Monday, February 14, 2011

जीने कि वजह चाहिए...

मुझको जीने कि वजह चाहिए.
ख्वाब नहीं, मुझको हकीकत चाहिए.

ख्वाब तो मौत कि आगोश में
और भी हसीं होगी ...

मुझको जीने कि वजह चाहिए
बहाना नहीं, मुझको मकसद चाहिए.

बहाने तो मरने के भी
बहुत मिल जायेंगे...

मुझको जीने कि वजह चाहिए
इरादा नहीं, मुझको हौंसला चाहिए.

written on 25th October 1994

Sunday, December 19, 2010

इस पल में ही रहना है

इस पल में ही रहना है

क्योंकर मैं उस कल के बारे में सोचूँ ,
जो बीत गया और फिर कभी आएगा ही नहीं?
और क्यों मैं अपने आज तो बर्बाद करूँ,
सोचकर उस कल के बारे में,
जो अभी तक आया ही नहीं?
बस ये पल ही तो मेरा है,
जो अभी तक बीता नहीं,
मुझे बस अब इसी में रहना है l

(written sometime in 2006)

Wednesday, September 22, 2010

आँख नम है, मगर
पलक झपकने नहीं देता दिल ये हाय
डरता है यह ये सोच, कि कहीं आँसू बनकर
याद उनकी बह न जाये.

Monday, September 20, 2010

उनकी निगाहों में...

मेरे कमरे में एक लम्बा-सा आइना है.
आते-जाते, चाहे-अनचाहे, जिसमे मैं
अपना प्रतिबिम्ब दिन में कई बार देखती हूँ.

आज फिर अकस्मात् दर्पण में खुद को देखा.
चपटी नाक और मोटे गालों के सिवाय
और कुछ नज़र ही नहीं आया.
हमेशा कि तरह मैंने फिर सोचा
कितनी साधारण-सी लगती हूँ मैं.
कुछ भी तो ख़ास नहीं है
मेरे इस सामान्य चेहरे में...

पता नहीं उन्होंने क्या देखा मुझमें
जो यूं घंटों निहारते रहतें हैं
अपनी खूबसूरत नीली आँखों से
मेरी मामूली सांवली सूरत को
मानो ऐसी मोहिनी मूरत
कभी देखी ही न हो !

अगर यह साँचा आइना न होता
तो मैं भी धोखा खा जाती
और अपने आप को सुन्दर समझ बैठती...

अचानक, मुझ पर गढ़ी उनकी एकटक
भावुक निगाहों क आभास हुआ
मारे शर्म के पलकें झट झुक गयीं.
और जब उठीं तो आँखों में एक अजीब-सी चमक थी
गालों पर सुर्खी और होटों पर एक हलकी-सी हंसी थी.

फिर सहसा एहसास हुआ,
शायद मुझ में नहीं
सुन्दरता उनकी निगाहों में है !

Sunday, September 19, 2010

यह कैसे दायरे में फँस गयी हूँ मैं?
जितना ही सुलझना चाहूँ, उतना ही उलझ गयी मैं!

Written somewhere in 1988
क्या ज़िन्दगी और क्या मौत है?
मर कर भी जियें, तो ज़िन्दगी
जिंदा रह कर मर जाएँ, तो मौत है

Written somewhere in 1988.

Friday, September 17, 2010

मौत भी कुबूल है, हमें तुम्हारे साथ
यह कैसी बदकिस्मती,
कि ज़िन्दगी भी गवारा नहीं तुम्हे हमारे साथ?